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Wednesday, 29 July 2015

One of my friend IMROZ ALAM write some line please read

ज़िक्र खोने का कहाँ, बात तो पाने की है
शर्त इस बार तुम्हें अपना बनाने की है।

जिसको सुनते हुए हँसते हो अदावत से तुम
वह कहानी भी तुम्हारे ही दिवाने की है।

आप मेरे फटे जूतों पे न जाइयेगा
मेरे इन पाँव मेँ दफ़्तार ज़माने की है।

वह उसी बात को हँस-हँसके सुनाते हैँ आज
हमसे जिस बात को कहते थे छुपाने की है।

अब के किरदार पे इल्ज़ाम दिए हैँ उसने
अब के कोशिश मुझे नज़रो से गिराने की है।

इतनी हसरत से घड़ी देख रहे हो जो तुम
आज तैयारी बताओ कहाँ जाने की है।

सोच लो काम ये आसान नहीं है इतना
बात "इमरोज़" को आलम से मिटाने की है।
इमरोज़ आलम

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